मैं न ही जानता हूँ
न ही पहचानता हूँ
पर मैंने ये जाने क्यों मान लिया
तुम वो ही हो जो मैं सोचता हूँ
तुम को जाने बिना
एक ख्याल गढ़ लिया
और मानता हूँ की
तुम वैसे हो जैसा मैं समझता हूँ
कितना गलत था मेरा ये सोचना
यूँ आवरण को देख भीतर को परखना
फिर बेवजह की एक धारणा बनाना
तुम वही हो जो मैं सोचता हूँ
न ही पहचानता हूँ
पर मैंने ये जाने क्यों मान लिया
तुम वो ही हो जो मैं सोचता हूँ
तुम को जाने बिना
एक ख्याल गढ़ लिया
और मानता हूँ की
तुम वैसे हो जैसा मैं समझता हूँ
कितना गलत था मेरा ये सोचना
यूँ आवरण को देख भीतर को परखना
फिर बेवजह की एक धारणा बनाना
तुम वही हो जो मैं सोचता हूँ