मैं क्या हूँ ?
मैं क्या कहूँ .......
कुछ ख़ास रंगों से
खींचा गया एक चित्र,
जो मेरा नाम सुनते ही
तुम्हारे मस्तिष्क पटल पर
उभर आया है,
या एक अवधारणा मात्र ,
याद है जब पहली बार
तुमने अपनी गहरी आँखों में
मेरी एक टेढ़ी -मेढ़ी परछाईं बनायी थी
उस कुरेद कर बनाये चित्र को
सुधारता रहा मैं जाने अनजाने
कुछ अपने कर्मों से
कुछ तुम्हारी सोंच से
पर अब भी उस परछाई
का एक टुकड़ा वैसा का वैसा ही है
और मैं वही एक छाप हूँ
तुम्हारे ह्रदय पे
जिसे रोज़ाना थोड़ा-थोड़ा
बदलता हूँ
शायद मेरे अस्तित्व का,
मेरे जीवित होने का,
संकेत यही है .......