कभी मुड़ जाएँ जो कदम
इन गलियों को तरफ
तो रुख,
उस घर का भी कर लेना
जहाँ, मेज़ पर तुम्हारी
ठंडी चाय रखी है,
जिसे वहां छोड़
तुम निकल गए बिना बताये
और इंतज़ार में चाय
पड़ी रही परतें जमाये,
कभी जो रुख़ करना
इस घर का तो
कोशिश करना चाय
गर्म करने की, पीने की
हालाँकि स्वाद वैसा
रहेगा नहीं,
न पी सको तो
फेंक ही देना चाहे,
गलत ही सही पर,
इक फैसला कर लेना
अच्छा होता है.
इन गलियों को तरफ
तो रुख,
उस घर का भी कर लेना
जहाँ, मेज़ पर तुम्हारी
ठंडी चाय रखी है,
जिसे वहां छोड़
तुम निकल गए बिना बताये
और इंतज़ार में चाय
पड़ी रही परतें जमाये,
कभी जो रुख़ करना
इस घर का तो
कोशिश करना चाय
गर्म करने की, पीने की
हालाँकि स्वाद वैसा
रहेगा नहीं,
न पी सको तो
फेंक ही देना चाहे,
गलत ही सही पर,
इक फैसला कर लेना
अच्छा होता है.
सच है एक बार रिश्तों में कडुवाहट घुल जाय तो फिर पहली जैसी मिट्टास नहीं आ पाती
ReplyDeleteबहुत सही