कभी देखो आईने में खुद को
क्या पहचानते हो इस शख्स को
मिले थे जिसे तुम आईने में बचपन के
जिसे रोज निहारते बड़े हुए लड़कपन से
देखते रहे जिसका रोज़ का बाल संवारना
नए कपड़े पहनना, पहन के उतारना
वो जो हँस हँस के गाने गाता था
हाथ छोड़ के साइकिल चलाता था
वो जो खुद के चुटकुलों पे ठहाके लगाता था
पर उस लड़की के आगे लजाता था,
उसके जैसा ये बिलकुल दिखता नहीं
हँसने गाने मुस्कुराने को रुकता नहीं
न पता किस दौड़ में है ये
जल्दी है बहुत, किसी होड़ में है ये
खीझता है जूझता है परेशान है,
जो भी हो ये शख्स कोई अनजान है
बचपन से खैर वक़्त बहुत गुजर गया
न जाने कौन आईने का शख्स बदल गया
क्या पहचानते हो इस शख्स को
मिले थे जिसे तुम आईने में बचपन के
जिसे रोज निहारते बड़े हुए लड़कपन से
देखते रहे जिसका रोज़ का बाल संवारना
नए कपड़े पहनना, पहन के उतारना
वो जो हँस हँस के गाने गाता था
हाथ छोड़ के साइकिल चलाता था
वो जो खुद के चुटकुलों पे ठहाके लगाता था
पर उस लड़की के आगे लजाता था,
उसके जैसा ये बिलकुल दिखता नहीं
हँसने गाने मुस्कुराने को रुकता नहीं
न पता किस दौड़ में है ये
जल्दी है बहुत, किसी होड़ में है ये
खीझता है जूझता है परेशान है,
जो भी हो ये शख्स कोई अनजान है
बचपन से खैर वक़्त बहुत गुजर गया
न जाने कौन आईने का शख्स बदल गया