Monday, January 6, 2020

आईने का शख्स

कभी देखो आईने में खुद को
क्या पहचानते हो इस शख्स को

मिले थे जिसे तुम आईने में बचपन के
जिसे रोज निहारते बड़े हुए लड़कपन से
देखते रहे जिसका रोज़ का बाल संवारना
नए कपड़े पहनना, पहन के  उतारना

वो जो हँस हँस के गाने गाता था
हाथ छोड़ के साइकिल चलाता था
वो जो खुद के चुटकुलों पे ठहाके लगाता था
पर उस लड़की के आगे लजाता था,

उसके जैसा ये बिलकुल दिखता नहीं
हँसने गाने  मुस्कुराने को रुकता नहीं
न पता किस दौड़ में है ये
जल्दी है बहुत, किसी होड़ में है ये
खीझता है जूझता है परेशान है,
जो भी हो ये शख्स कोई अनजान है

बचपन से खैर वक़्त बहुत गुजर गया
न जाने कौन आईने का शख्स बदल गया