तुझसे कुछ बातें करना चाहता हूँ
कभी तुझसे मिलना चाहता हूँ
मगर फिर यूँ ही सोंचता हूँ
"टूटे शीशों को जोड़ने से
तस्वीर न बदलेगी ,
मैं बदनसीब हूँ
मेरी तकदीर न बदलेगी ,
थोडा सा जो बाकी है कहीं
वो पूरा टूट न जाए ,
हाथों में जो बाकी छोटी सी
वो डोर छूट न जाये ,
कहीं ऐसा न हो जो रह गया बाकी
वो एहसास भी मिट जाए ......."
यही सोंचकर बढ़ते कदम
रुक से जाते हैं .......
कभी तुझसे मिलना चाहता हूँ
मगर फिर यूँ ही सोंचता हूँ
"टूटे शीशों को जोड़ने से
तस्वीर न बदलेगी ,
मैं बदनसीब हूँ
मेरी तकदीर न बदलेगी ,
थोडा सा जो बाकी है कहीं
वो पूरा टूट न जाए ,
हाथों में जो बाकी छोटी सी
वो डोर छूट न जाये ,
कहीं ऐसा न हो जो रह गया बाकी
वो एहसास भी मिट जाए ......."
यही सोंचकर बढ़ते कदम
रुक से जाते हैं .......
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