जिन्दगी यूं खेलती है खेल हमसे
लगता है की दूर कहीं
फलक मिल रहा है जमीं से
क़यामत तक हम यूं ही चले जायेंगे
वो मुकाम फिर भी न पायेंगे
मगर उस दम भी गुमां होता है
दूर कहीं दूर ये दोनों मिल जायेंगे.....
भटक जाता हूँ हर मोड़ पर, अजनबी सी हैं ये गलियाँ l इक तो लीक नयी मेरी, उसपर अन्जान शहर तेरा l