मेरी ज़ुबान
भटक जाता हूँ हर मोड़ पर, अजनबी सी हैं ये गलियाँ l इक तो लीक नयी मेरी, उसपर अन्जान शहर तेरा l
Thursday, August 4, 2011
क्षितिज
जिन्दगी यूं खेलती है खेल हमसे
लगता है की दूर कहीं
फलक मिल रहा है जमीं से
क़यामत तक हम यूं ही चले जायेंगे
वो मुकाम फिर भी न पायेंगे
मगर उस दम भी गुमां होता है
दूर कहीं दूर ये दोनों मिल जायेंगे.....
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