लम्हे यूं गुजर जाते हैं
हाथों से रेत की तरह
फिसल जाते हैं
रोकना तो चाहा बहुत मगर
ये तो बादल हैं
बस उड़ते ही चले जाते हैं
लम्हों को खुल के जीना
हमने सीखा ही नहीं
जिन्दगी की राह पर
सर को झुकाए चले जाते हैं
बेहिसाब लम्हे यूँ ही
गुजरते गए
सिवाय उस लम्हे के
जिसमे हम तुम साथ थे
और वो याद बन गया.....
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