मेरी ज़ुबान
भटक जाता हूँ हर मोड़ पर, अजनबी सी हैं ये गलियाँ l इक तो लीक नयी मेरी, उसपर अन्जान शहर तेरा l
Tuesday, February 12, 2013
मेरी ज़िन्दगी के लम्हों को कम कर रही है,
दीवार पे टंगी घड़ी टिक-टिक चल रही है।
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