"एक शाम बैठे थे हम तुम साथ में ,
वक्त जा रहा था पहलू में रात के ,
दिन रोज की तरह ढलता जा रहा था,
तुम्हारी जुल्फ का बादल अँधेरे में घुलता जा रहा था ,
रौशनी हो गयी थी मद्धम मद्धम,
चाँद निकलने लगा था चमचम चमचम,
तभी एक बात छिड़ गयी,
कभी फूलो कभी बहारों की बात हुई,
कभी नजर तो कभी नजारों की बात हुई,
कभी सावन तो कभी फुहारों की बात हुई,
कभी चंदा तो कभी सितारों की बात हुई,
................ख्वाब टूटा जो मेरा.........
.वहां था ................बस अँधेरा ...........
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