Tuesday, September 8, 2020

सपनों के बीज

सृष्टि का सृजन 
नहीं होता है केवल 
विश्वकर्मा के चमत्कार से 
इसके लिए बलि लगती है 
खून पसीने और सपनों की 

ये बलि देता है एक मज़दूर 
जो मार देता है 
सपनों को लड़कपन में ही 
और दफ़्न कर देता है 
किसी सौ मंज़िला 
ईमारत की नींव में 

इन सपनों के बीज से 
उगते हैं घर-बार 
कारखाने -मशीनें 
ऐश-ओ-आराम 
और हमारी ज़िन्दगी। 

Monday, January 6, 2020

आईने का शख्स

कभी देखो आईने में खुद को
क्या पहचानते हो इस शख्स को

मिले थे जिसे तुम आईने में बचपन के
जिसे रोज निहारते बड़े हुए लड़कपन से
देखते रहे जिसका रोज़ का बाल संवारना
नए कपड़े पहनना, पहन के  उतारना

वो जो हँस हँस के गाने गाता था
हाथ छोड़ के साइकिल चलाता था
वो जो खुद के चुटकुलों पे ठहाके लगाता था
पर उस लड़की के आगे लजाता था,

उसके जैसा ये बिलकुल दिखता नहीं
हँसने गाने  मुस्कुराने को रुकता नहीं
न पता किस दौड़ में है ये
जल्दी है बहुत, किसी होड़ में है ये
खीझता है जूझता है परेशान है,
जो भी हो ये शख्स कोई अनजान है

बचपन से खैर वक़्त बहुत गुजर गया
न जाने कौन आईने का शख्स बदल गया