नहीं होता है केवल
विश्वकर्मा के चमत्कार से
इसके लिए बलि लगती है
खून पसीने और सपनों की
ये बलि देता है एक मज़दूर
जो मार देता है
सपनों को लड़कपन में ही
और दफ़्न कर देता है
किसी सौ मंज़िला
ईमारत की नींव में
इन सपनों के बीज से
उगते हैं घर-बार
कारखाने -मशीनें
ऐश-ओ-आराम
और हमारी ज़िन्दगी।