Wednesday, December 21, 2016

मसीहा

निगाहों से इल्म की चाह में
हर मोड़ पर मक़तब बदल गए ,

हर मसीहा में खुदा देखने की आदत
कभी बदले रब कभी मज़हब बदल गए




Wednesday, November 30, 2016

बेपता लिफ़ाफ़ा

बेपरवाह, बेठिकाना , आवारा
हवा में उड़ रहा है
एक बेपता लिफ़ाफ़ा।
यूँ तो खुद का पता नहीं
पर सारी गलियां सारे मोहल्ले
सारे शहर इसीके हैं।
होने को ये सबका है
जो न  हो, तो किसी का नहीं
किसी पते की जरुरत क्या है
बे-पतों  का तो  पूरा आसमां  है
क्यों बाँध दें शख्सियत इसकी
दो चार लाइनों के दायरे में
इस पल ये मैं हूँ
तू हो जाएगा अगले पल में
हवा के साथ उड़ता रहे  दर-बदर
क्यूंकि बहते रहना ही
असल मायनों में ज़िन्दगी है।

Thursday, October 27, 2016

वज़ूद

कोई रंग नहीं है मेरा
न ही कोई रंग होता है किसी का,
कोई आकार नहीं है मेरा
ना ही कोई पहचान होती है किसी की ,
कोई पता भी  नही है मेरा
ना ही ठिकाना होता है किसी का,

ये रंग, ये रूप,
ये आकार, ये पहचान,
ये पते, ये ठिकाने,
ये अच्छा, ये बुरा,
सब के सब वहम
तुम्हारी आँखों में हैं।

और मैं ?
मैं तो बस पानी हूँ...
बिलकुल तुम्हारी तरह।

जब तक की आँखों ने
एक ख़ास रंग घोल
वज़ूद ना बना दिया।

Monday, October 10, 2016

गुज़रा वक़्त

मुड़ के देखो तो लगता है
सब ठीक ठाक था 
ऐसा नही है की मुकम्मल था 
पर सब ठीक ठाक था 

संघर्षों के निशान यादों से 
धीरे धीरे मिट जाते हैं 
उजालों में ये साये भला फिर 
कहाँ टिक पाते हैं 

ज़िन्दगी के वो तीखे कोने 
वक़्त के साथ घिस से जाते हैं 
और फिर मुड़ के देखो तो लगता है 
सब ठीक ठाक था 
मानो सब कितना आसान था 

यही कहानी आज है 
यही कहानी कल होगी 
जो आज कठिन लग रही है 
कल वो ज़िन्दगी नहीं मुश्किल होगी।

Tuesday, September 27, 2016

मेरे नाम

रहो जो बेक़रार मेरे बिन
मुझे दिल का करार लिखना

रहे राहों पे निगाहें जब तलक
आँखों का इंतज़ार लिखना

भूल जाओ जो काम काज मेरी याद में
दिल-ओ-दिमाग का इतवार लिखना

बेनींद गुजरी हैं जो राते ख्वाबो में
निगाहों का वही मौसम दुश्वार लिखना

मिलूंगा न जब इस ज़माने में
अपने दिल पे जाना मेरा इश्तेहार लिखना



Wednesday, September 21, 2016

जमाने भर की सलाह
को स्वीकार करना
मगर बदस्तूर वही
व्यवहार रखना

हर किसी को कुछ न कुछ
कमी दिखती है मुझमे
बड़ा मुश्किल है खुद में
खुद को बरकरार रखना 
दरिया का दरिया
एक घूँट में पी गए
जो ज़िन्दगी एक कहानी
समझ के जी गए

एक लंबा सा
रास्ता ही तो है
काफ़िर भी गए
रामनामी भी गए 

प्रश्न

कहा तुमने
जो सत्य है
उसका पालन करो

जो धर्म है
उसको धारण करो

जीवा सत्कर्मों पर
अर्पण करो

परंतु सब कुछ
जीवन /मृत्यु
धर्म /अधर्म
सत्य/असत्य
जैसा स्पष्ट तो नहीं

अक्सर मोड़ ऐसे आते हैं
जो दिशाओं के बीच से जाते हैं

वहां क्या परिभाषा हो
इन मूल्यों की ??

अँधेरा उजाला घुल जाए अगर
किस रंग रंगे ये मन ??

मैं

मेरी शख्सियत मेरा वज़ूद
सब बेमानी है
तुमने जैसा देखा मुझे
समझा मुझे, जाना मुझे
मेरे होने का सबूत बस वही कहानी है

मैं क्या सोंचता हूँ, के मैं क्या हूँ
कुछ असर नहीं रखता,
मैं जैसा रहा, जो मैंने किया
तुम्हारी आँखों में
तस्वीर वही रह जानी है

हर कोई जानता है मुझको
अलग तरह से
जैसे हज़ार इंसान हों एक मुझमे
एक पत्थर की लहरे हों जैसे कई सारी
मगर दर असल तो सब पानी है

मेरी शख्सियत मेरा वज़ूद
सब बेमानी है

दो लोग

दो लोग एक हो भी जाएँ बेशक
फिर भी दो रहना ज़रूरी है
जो नज़दीकियों की हद है
वो ये दूरी है

चिराग अलग अलग हो सबके
बस घर में रौशनी एक रहे
आँधियों का क्या भरोसा
दिया एक ही हो ऐसी भी क्या मज़बूरी  है 

Wednesday, March 9, 2016

एक राष्ट्र - एक परिवार

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,  सब कड़ियाँ इक ज़ंज़ीर की
अतरंगे सब रंग निराले,  भारत के तस्वीर की
बढ़ें प्रगति की राह पर,  जो चले हाथों में ले हाथ
जाती धर्म के द्वेष भुलाकर, कदम बढ़ाये साथ साथ

सात सुरों का राग बनाकर,  क्यों न इक स्वर में गा लें हम
एक ही माँ के सब बेटे हैं,  आओ एक दूजे को अपना लें  हम
रेशा रेशा जो बिखरा बिखरा,  समय की धूल में खो जाएगा
गूंथ गूंथ कर हर धागे को, अखंड सूत्र बना ले हम

रंग बिरंगे फूल हैं सारे मिलकर उपवन महकायेंगे
कतरा कतरा साथ में बहके सागर बन जायेंगे हम
असंख्य भुजाओं का एक हाथ बने, जो हम सारे साथ चलें
वेदों के ज्ञाता विश्व गुरु हैं, विश्व शक्ति भी बन जायेंगे हम

इस धरा पे रहेगा अपना कोई दुश्मन शेष नहीं
पवित्र पावन इस घर में गर रहे कोई क्लेश नहीं
सर्वधर्म समभाव ही उज्जवल भविष्य की नींव है
ईंट से ईंट जोड़ सुदृढ़ एक दीवार बन जायेंगे हम

रहे भरोसा सबको सबपर ऐसा  माहौल  बनाना है
एक राष्ट्र के वासी हैं, हमें एक परिवार बनाना है।



Sunday, February 21, 2016

तलाश

जो हाथों में है आगोश में है
वो कहाँ दिल के पास है
और जो निगाहों में हैं जुनूँ में है
ना जाने क्या है जिसकी तलाश है

हर ठौर बढ़ती जा रही
हर कदम नयी सी प्यास है
हर शय किसी नयी मंज़िल का साया
फिर भी दिल उदास है

फासलों में नज़दीकियों को तरसते थे
पास आके दूरियों की तलाश है
अजीब है ये दस्तूर-ए -ज़िन्दगी भी
जो मिल गया फिर कहाँ वो ख़ास है

हर मंज़िल इक नयी मंज़िल का रास्ता है
मिलेगी औ बिसर भी जाओगे जिसकी आस है
सुकूं में बैठा हु आज तो लगता है
हमे इक नए दर्द की तलाश है 

Saturday, February 20, 2016

मर गया बेचारा सपना

जंजीरो से बाँध बाँध कर क्यों गला घोंट रहा अपना ??
अब भी वक्त है , नब्ज़ पकड़
देख हो सके ज़िंदा हो वो सपना,

इतना तो याद है काफी दूर तक साथ आया था
बचपन की गलियों में तुझे हँसता देख
वो भी मुस्काया था
तब भी वो डरा सहमा रहा खड़ा
जब तूने दो दूनी चार समझाया था

पर फिर तू दुनिया के बाजार की तरफ मुड़ गया
खुद को बेंच ख़ुशी खरीदना चाहते थे
खरीद फरोख्त के चक्कर में
उसको कैसे कैसे डर सताते थे

तुम्हे भी कहां परवाह थी
तुम तो खरीददार ढून्ढ रहे थे
अपनी ज़िन्दगी के
पुकारा भी था उस सपने ने तुम्हे
मगर आवाज़ दबा दी
भविष्य के जहरीले सांप दिखा के

अंदर ही अंदर तुम भी चाहते थे उसे
शायद उतना ही
मगर अपनाने से कतराते रहे
आज़माते रहे दूसरा और सब कुछ
डरते थे शायद या डरते हो आज भी
मगर किस्से ?? मगर क्यूँ ??
इन बाज़ार वालों से?? या, अपनों की आँखों से ??
खैर, तुमने ये सब सोंचा कहा??

सब बिक गया अब शायद कुछ बचा नही
या जो बचा है वो किसी काम का नहीं
जब सब दिए बुझ गए तब तू सोंचता है
कि जंजीरो में बांध - बाँध  क्यों घोटा गाला अपना
पर अब शायद देर हो गयी
मर गया बेचारा सपना।