निगाहों से इल्म की चाह में
हर मोड़ पर मक़तब बदल गए ,
हर मसीहा में खुदा देखने की आदत
कभी बदले रब कभी मज़हब बदल गए
हर मोड़ पर मक़तब बदल गए ,
हर मसीहा में खुदा देखने की आदत
कभी बदले रब कभी मज़हब बदल गए
भटक जाता हूँ हर मोड़ पर, अजनबी सी हैं ये गलियाँ l इक तो लीक नयी मेरी, उसपर अन्जान शहर तेरा l