Tuesday, January 22, 2013

एक बार फिर ....

तुझसे कुछ बातें करना चाहता हूँ
कभी तुझसे मिलना चाहता हूँ
मगर फिर यूँ ही सोंचता हूँ
"टूटे शीशों को जोड़ने से
तस्वीर न बदलेगी ,
मैं बदनसीब हूँ
मेरी तकदीर न बदलेगी ,
थोडा सा जो बाकी है कहीं
वो पूरा टूट न जाए ,
हाथों में जो बाकी छोटी सी
वो डोर छूट न जाये ,
कहीं ऐसा न हो जो रह गया बाकी
वो एहसास भी मिट जाए ......."

यही सोंचकर बढ़ते कदम
रुक से जाते हैं .......

No comments:

Post a Comment