आंखों पर झूठ का एक पर्दा है
जिसे उतार फेंकने का दिल करता है
हंसना नकली रोना नकली
बातों में एक बनावट है
मेरी जिंदगी! मेरी कहानी!
लगे किसी और की ही लिखावट है
मुझमें क्या है मेरे जैसा
और क्या लोगों को दिखता है
झूठ के परदे पर आखिर
एक अदाकार ही टिकता है
जिसको चाह सके ये दुनिया
मैं क्यूं उस जैसा बन जाऊं
असली भी हूं मैं कुछ तो
या बस परछाईं ही बनना चाहूं?
मैं वो ही दिखलाऊंगा तुमको
जिसको तुम स्वीकार सको
ढांप के रखो कमियां उस कोने में
जिसमें ख़ुद को धिक्कार सको
संदेह मेरा मुझ पर बली हुआ है
आत्मबल अब डरता है
आंखों पर झूठ का एक पर्दा है
जिसे उतार फेंकने का दिल करता है।