भटक जाता हूँ हर मोड़ पर, अजनबी सी हैं ये गलियाँ l इक तो लीक नयी मेरी, उसपर अन्जान शहर तेरा l
पथरीले रास्ते
लंगड़ी टांग
विकास का नाच
चलता रहे।
झोपड़ियां जलें
रोटियां सिकें
लोकतंत्र का पेट
भरता रहे ,
तलवारें चलें
वहशत उगे
सियासत का चमन
खिलता रहे ,
लोक की लकड़ी
तंत्र की आग
होलिका दहन
चलता रहे
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