Monday, May 13, 2013

यादें जो छूटती नहीं

दुपहरिया की धूप हो 
या आधी रात का अँधेरा 
बिना किसी शर्त के 
तुम लोगो ने साथ दिया है मेरा,

चार साल साथ में मिलकर
हमने खूब बकवास की
याद है मुझको रात रात भर खेली
सारी बाज़ी ताश की ,

' गेम ' ने सबका गेम बजाया
' आधा ' ने पूरा साथ निभाया
' चिकना ' अपनी चिकनाहट में मस्त
' मोटा ' भाई के आगे सारे पस्त,

' बंगाली' कभी नहाये ना
' छोटू ' को चैन कभी आये ना
' क्रन्तिकारी ' ख्यालों में खोया रहे
' बुढवा ' दिन भर सोया रहे,

एक था अपना ' राजकुमार '
नेपाल से वो आया था,
' गोलू ' अपना मस्त था लेकिन
कांग्रेस से खार वो खाया था ,

वो हम लोग कुछ और थे
वो समय कुछ और था
गज़ब वो अपना बेफिक्री
का दौर था .........

जो यादों की बेशकीमती डायरी
मेरे पास छोड़ गए हो
रोज उसमे से एक पन्ना
पढता हूँ ..... , हँसता हूँ ......
आँखें भीग जाती हैं ....
और मैं बस खो जाता हूँ ........ 

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