Tuesday, August 13, 2013

फिर फिर सावन आएगा

फिर सावन आया है
फिर मेंढक टर्रायेंगे 
खादी पहन कर भेड़िये 
मेमनों को दुलराएंगे
देश की दुर्गति करने वाले
शान से तिरंगा फहराएंगे
लूट के देश की सुख-संपदा
गीत राष्ट्र -भक्ति के गायेंगे,
भूखी जनता जब कोसेगी
वादों के लड्डू खिलाएंगे
माँ बहन की कसमे खायेंगे
कि, गरीबी (गरीबों ) को मिटायेंगे
स्विस बैंक में नए अकाउंट खुलवायेंगे,
फिर सीमा पार गीदड़ गुर्रायेंगे
और पिंजड़े में बंद शेर हमारे
खादी के कारण मारे जायेंगे,
एक बार फिर पक्ष विपक्ष
जनता को उल्लू बनायेंगे
ऊपर ऊपर झगड़ेंगे
भीतर भीतर माल दबायेंगे,
. .
..
काँधे पे ले अपनी छोटी सी दुनिया
हम फिर  अपना दुखड़ा गायेंगे
बड़े लोग हैं, सब कर सकते हैं
हम आखिर क्या कर पायेंगे

पर अगर आज भी नहीं जागे .....

फिर फिर सावन आएगा
फिर फिर मेंढक टर्रायेंगे
खादी पहन कर भेड़िये 
एक बार फिर मेमनों को चबायेंगे 

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