Thursday, August 29, 2013

पायल

अल्हड मेरी चाल पे
मेरे मन की उछाल पे
छनका  करे  यूँ ही
खनका करे यूँ ही
उड़ती फिरू जो सपनों की नगरी
संग-संग मेरे चले यूँ ही
ना मैं छनकने से रोकूँ ……. 
न ये भटकने से रोके
रिश्ता ऐसा हो अपना
पाँव में पायल के जैसा
……बस कोशिश ये रहे
पायल है.……… पायल ही रहे
क़दमों की बेड़ी  न बने
मुझको रोके नहीं।  

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